भारतीय संगीत पर परिसंवाद एवं प्रस्तुती

राम छाटपार शिल्प न्यास, वाराणसी

15- 17 अक्टूबर, 2024

‘सिद्ध’ पिछले 3-4 वर्षों से अपने मित्रों के साथ ‘भारतीयता’ और ‘आधुनिकता के द्वन्द्ध’ को समझने के लिए आवसीय परिसंवाद शिविर का आयोजन करता आ रहा है। आमतौर पर इन शिविरों में हम गहनता से विमर्श करते हैं। प्रयास यह रहता है अपने अनुभवों को गहराई से देखते हुए विषय को समझने का प्रयास किया गया। दिनांक 15, 16 व 17 अक्टूबर, 2024 को सिद्ध ने पहली बार ‘राम छाटपार शिल्प न्यास’, वाराणसी के सहयोग से भारतीय संगीत विषय पर परिसंवाद करने का प्रयास किया। परिसंवाद शिविर में अपनी कला में विशेषज्ञ विद्धानों ने प्रतिभाग किया।

संगीत परिसंवाद का शुभारम्भ 15 अक्टूबर, 2024 को राम छाटपार शिल्प न्यास दीप प्रज्चलित करके किया गया। इस अवसर पर डा. श्रद्धा गुप्ता द्वारा गणेश वन्दना व बैंगलोर से गायक श्री प्रशान्त ने शिव स्तुति की प्रस्तुति की। सिद्ध, मसूरी के निदेशक श्री पवन कुमार गुप्ता ने अतिथियों का स्वागत करते हुए बताया सिद्ध मसूरी पिछले 35 वर्षों शिक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रही है। गत तीन वर्षो से हम परिसंवाद के माध्यम भारतीयता को समझने का प्रयास कर रहे हैं। इस क्रम में भारतीय संगीत के माध्यम ये भारतीयता के अध्ययन का यह प्रयोग हम पहली बार कर रहे हैं। 

‘सिद्ध’ द्वारा किया गया यह प्रयोग अपनी ही तरह का एक अनोखा प्रयास रहा। क्योंकि आमतौर पर हम संगीत को सुनने तो जाते हैं और 2-3 घंटे का कार्यक्रम होता है कलाकार संगीत की प्रस्तुति करते हैं दर्शक उस प्रस्तुति का आनंद लेते हैं। संगीत के माध्यम से भारतीय मानस को समझने का यह प्रयास अपनी तरह पहला प्रयोग कहा जा सकता है। संगीत परिसंवाद में आये दुप्रद के जानेमाने कलाकार डा. ऋत्विक सन्याल जी से कहा भी कि संगीत पर इस तरह के परिसंवाद के अवसर बहुत की कम मिलते हैं। भारतीय संगीत को समझने की दिशा में सिद्ध द्वारा किया जा रहा यह प्रयास सराहनीय है। 

परिसंवाद के पहले सत्र दिनांक 15 अक्टूबर को गुरुजी श्री प्रेमचन्द होमबाल जी ने प्रतिभागियों को भारतीय नाट्य शास्त्र की गहराईयों के बारे में संक्षिप्त परिचय दिया। भारत सरकार द्वारा गुरुजी श्री प्रेमचन्द होमबाल जी को प्रतिष्ठित संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से वर्ष 2021 में सम्मानित किया गया है। वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कला संकाय में नृत्य विभाग के प्रमुख के रूप में 36 वर्षों तक कार्यरत रहे हैं। उन्हें देशभर में भरतनाट्यम और पारंपरिक संस्कृत रंगमंच की व्यापक समझ एवं दक्षता के जाना जाता है। अपने सत्र में उन्होंने हमें उन्होंने बताया कि किस प्रकार भारतीय नाट्य शास्त्र में किस तरह बहुत बारीकी से मनुष्य की भावों का अध्ययन किया गया। उन्होंने ना सिर्फ मनुष्य की भावभंगिमाओं का वर्णन किया बल्कि उन्होंने व उनके शिष्यों ने प्रत्येक भावभंगिमा का प्रस्तुतीकरण भी प्रतिभागियों के समक्ष प्रस्तुत किया। 

15 अक्टूबर का दूसरा सत्र विदुशी डॉ. कमला शंकर जी द्वारा लिया गया। वे देश की सुप्रसिद्ध पहली महिला गिटार वादिका हैं। उन्होंने भगवान शंकर के नाम से शंकर वीणा का  अविष्कार किया। है। वे आकाशवाणी एवं दूरदर्शन की टॉप ग्रेड कलाकार हैं। वे पिछले 43 वर्षों से लगातार प्रतिष्ठित मंचीय प्रस्तुति दे रही हैं। उन्हें राष्ट्रीय कुमार गंधर्व एवं उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी सम्मान से सम्मानित भी किया गया है। अपने सत्र में उन्होंने वीणा वाद्य की बारिकियों से प्रतिभागियों को अवगत कराया। इसके साथ उन्होंने शानदार प्रस्तुती भी दी। 

16 अक्टूबर को परिसंवाद के तीसरे सत्र को देश के जाने माने ध्रुपद गान के कलाविद पंडित (डॉ) ऋत्विक सान्याल ने अपने संबोधन व प्रस्तुति के माध्यम से संचालित किया। उन्होंने बताया किया हमारे देश शस्त्रीय संगीत जैसी कोई विशेष विधा नहीं है। हमारे यहाँ सिर्फ संगीत है जिसके दो प्रकार देखे जा सकते हैं मार्गीय और देशीय। परम्परा में मार्गीय संगीत का एक मार्ग सुनिश्चित किया गया है। अर्थात उसे एक नियम के दायरे में निर्मित किया जा सकता है जबकि देशिय संगीत जिसे लोक संगीत भी कह सकते हैं वह हर क्षेत्र विशेष का अपना है। उसमें उस संस्कृति की, उस भौगोलिक क्षेत्र की खुशबू है। लेकिन दोनों ही संगीतों में लिखित कुछ विशेष नहीं है। अधिकतर संगीत श्रुति परम्परा पर आधारित है और इसमें हमेशा रचनात्मकता की सम्भावना विद्यमान रहती है। भारतीयता में संगीत स्थिर नहीं है बल्कि सदैव गुरु-परम्परा के अपने एक दायरे में सदैव प्रगति की राह में है। पाश्वात्य संगीत से इसकी तुलना करते हुए उन्होंने कहा कि वहाँ शास्त्रीय संगीत है जो स्थिर है। आप उससे इधर-उधर नहीं जा सकते। क्योंकि वहाँ का अधितकर संगीत नोट्स के रूप में लिखित है। उन्होंने स्वर, नाद और शब्द के बारे में भी विस्तार से बताया। उन्होंने कहा हमारे संगीत मनोरंजन का साधन नहीं रहा है यह माध्यम रहा है अध्यात्मक का और ईश्वर की स्तुति का। 

डा. सन्याल का मृदंग पर साथ दिया एक प्रतिभाशाली युवा पखावज कलाकार श्री आदित्य दीप ने। श्री आदित्य इसी प्रकार बड़े मचों में चोटी के कलाकारों के साथ संगत व अपने एकल प्रर्दशन के जाने जाते र्हैं।      
परिसंवाद के चौथे सत्र में डा. श्रद्धा गुप्ता और बैंगलोर से आये प्रशान्त ने अपनी बात रखी व अपनी संगीत प्रस्तुति भी दी। डा. श्रद्धा गुप्ता गंगा महोत्सव, संगीत पूर्णिमा, सुबह-ए- बनारस जैसे मंचों पर प्रदर्शन करती रही हैं। 
परिसंवाद के अन्तिम व पाँचवे सत्र प्रो. राजेश शाह ने सितार वाद्य के बारे में बताया और प्रस्तुती भी दी। प्रो. राजेश शास्त्रीय वाद्य संगीत (सितार) के एक प्रसिद्ध और जाने-माने कलाकार हैं। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में कला संकाय के पूर्व संकाय प्रमुख व विभागाध्यक्ष रहे हैं। ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन प्रसार भारती के ‘ए’ ग्रेड कलाकार।

17 अक्टूबर, 2024 को शरद पुर्णिमा के अवसर पर शाम 5.00 बजे संगीत पुर्णिमा का आयोजन किया गया। इस संगीत पूर्णिमा में प्रो. राजेश शाह ने सितार वाद्य की, पंडित (डॉ) ऋत्विक सान्याल ने ध्रुपद गायन, विदुशी डॉ. कमला शंकर जी द्वारा गिटार वाद्य की और पंडित माता प्रसाद मिश्रा व पंडित रवि शंकर मिश्रा कथक नृत्य की प्रस्तुती दी गयी। संगीत पूर्णिमा में ना सिर्फ संगीत परिसंवाद के प्रतिभागियों ने प्रतिभाग लिया बल्कि वाराणसी शहर से लगभग 100 अन्य नागरिकों ने भी प्रतिभाग किया। देर रात लगभग 10.30 तक गंगा तट पर आयोजित इस संगीत पूर्णिमा का अनुभव सभी प्रतिभागियों से अद्वितीय रहा।    

 

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