संस्थापक

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संस्थापक
श्री पवन कुमार गुप्ता

श्री पवन कुमार गुप्ता ने सिद्ध को पिछले 35 वर्षों से एक समग्र नेतृत्व प्रदान किया है। उनके नेतृत्व में सिद्ध अनेकों उपलब्धियाँ हासिल की। सिद्ध के समस्त कार्यकर्ताओं व सहयोगी संस्थाओं से जुड़े या व्यक्तिगत तौर पर भी युवाओं के लिए वे हमेशा एक शिक्षक व मागदर्शक के रूप में उपलब्ध रहे हैं। श्री पवन कुमार गुप्ता का जन्म अगस्त 1953 कलकत्ता में हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा वहीं के हिंदी हाई स्कूल से हुई। फिर आपने सन 1976 में आई०आई०टी० दिल्ली से इंजीनियरिंग में स्नातक की पढ़ाई (बी०टेक०) की। डॉ. राम मनोहर लोहिया जी, श्री जयप्रकाश नारायण आदि प्रसिद्ध समाजवादी चिंतक एवं नेताओं से उनके परिवार का गहरा सम्पर्क रहा है। जिसका प्रभाव इनकी प्रारम्भिक चिंतन शैली पर भी पड़ा है।

 सन 1984 में श्री सत्यनारायण गोयंका जी के निर्देशन में श्री पवन ने विपश्यना साधना प्रारम्भ की। सन् 1993 में गोयंका जी ने पवन जी को अपना कनिष्ठ सहायक आचार्य भी नियुक्त किया। लेकिन उन्होंने जल्द ही उस पद को त्याग दिया। सन् 1989 में व्यवसाय से अलग होकर मसूरी में आकर रहने का निर्णय लिया और सिद्ध की शुरुआत की। श्री पवन ने धर्मपाल जी, किशन पटनायक, सामदोंग रिन्पोंछे जी, गुरुजी श्री रविन्द्र शर्मा और श्री अग्रहार नागराज के सानिध्य में रहकर देश, समाज और स्वयं को समझने का प्रयास किया। भारतीय परम्पराओं में शिक्षा को कैसे देखा समझा गया है, कौन सी पद्धतियाँ रहीं हैं, भारतीय सभ्यता की अवधारणाएँ, आधुनिकता और विकास की अवधारणाएं, आधुनिक विज्ञान और परंपरागत ज्ञान, लोक विद्या के बीच भेदों को समझाने में श्री पवन की विशेष रुचि रही है।

सह संस्थापक
श्रीमती अनुराधा जोशी

श्रीमती अनुराधा जोशी मनोविज्ञान में स्नातकोत्तर हैं। उन्होंने कोलकाता के विभिन्न स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ाया है। 1989 में, उन्होंने श्री पवन गुप्ता के साथ मिलकर सिद्ध की स्थापना की। सिद्ध द्वारा किये गये महत्वपूर्ण शोध कार्य, शिक्षकों का प्रशिक्षण आदि गतिविधियों में अनुराधा जी की मुख्य भुमिका रही है। उन्होंने ग्रामीण समुदाय के साथ कई संवाद शुरू किए और यह पाया कि आधुनिक शिक्षा प्रणाली बच्चों को उनकी भाषा और संस्कृति से ही नहीं, बल्कि गांवों में अभी भी मौजूद टिकाऊ जीवनशैलियों से भी दूर कर रही थी। उनके नेतृत्व में सिद्ध ने छात्रों की आत्म-सम्मान को बढ़ाने और शिक्षा को स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार प्रासंगिक बनाने की दिशा में कार्य किया। उनके रुचि के क्षेत्र में लेखन, संगीत और परामनोविज्ञान शामिल हैं।

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