सिद्ध : आगे की राह ...

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उत्तराखंड राज्य के निर्माण (2000) के बाद गाँव-गाँव में सरकारी स्कूल खुलने लगे। उन गाँव में भी जहाँ सिद्ध के प्राथमिक स्कूल चल रहे थे। इन परिवर्तनों और दानदाता संस्थाओं के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव के कारण, सिद्ध ने 2012 तक अपने अधिकतर स्कूल और बालवाड़ियाँ बंद कर दिए। इसके बाद, सिद्ध ने संवाद, शोध, और प्रकाशन जैसी गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित किया।

सिद्ध की मूल मान्यताएँ

भारतीय परंपराएँ सनातन और शाश्वत सत्य पर आधारित हैं, जो प्रकृति और अस्तित्व के साथ संतुलन में रहती हैं। परिणामस्वरूप एक आम भारतीय स्वयं में सहज है और वह प्रकृति के साथ सहयोग से भरपूर जीवन जीता है।

इण्डिया का पढ़ा-लिखा वर्ग आज उस आधुनिकता में जीने को बाध्य है जिसका अपना कोई वास्तविक आधार ही नहीं है बल्कि वह अपनी काल्पनिक मान्यताओं को अस्तित्व पर थोपती है। इससे व्यक्ति के भीतर द्वन्द्ध और सामाजिक स्तर पर तमाम तरह के संघर्ष उत्पन्न होते हैं।

हम जैसे पढ़े-लिखे भारतीयों की दृष्टि आधुनिक काल्पनिक मान्यताओं के चलते दूषित हो गयी है। हम स्वयं का, समाज का, अपने देश-काल का और विश्व की तमाम जटिलताओं का संज्ञान अपनी इसी दूषित दृष्टि से लेने को बाध्य हैं। जिस कारण हमें कभी भी वास्तविकता का भान नहीं होता और हम एक भ्रम की स्थिति में जीते हैं।

सिद्ध का प्रयास

सिद्ध का उद्देश्य आधुनिकता के प्रभावों का निष्पक्ष अवलोकन कर, एक संशोधित और संतुलित दृष्टि विकसित कर वर्तमान को जैसा वह है उसका उसी रूप में संज्ञान लेना है। हमारा विश्वास है कि इस प्रक्रिया से हम एक ‘सनातन भारतीय दृष्टि’ प्राप्त कर सकेंगे।

हमारे प्रयास के मुख्य आयाम:

  • स्वयं और समाज का गहन व निरपेक्ष अध्ययन।

  • अनुभव के आधार पर मानसिक प्रक्रियाओं को सुदृढ़ करना और भारतीय बौधिक स्तर का विकास।

  • भारतीय सभ्यता, संस्कृति, और आस्था से जुड़ी मान्यताओं का पुनर्जीवन।

सिद्ध की गतिविधियाँ

1. परिसंवाद

सिद्ध नियमित रूप से आवासीय परिसंवाद आयोजित करता है, जिसमें भारतीयता और आधुनिकता के भ्रम को समझने का प्रयास किया जाता है।

2. ऑनलाइन उपस्थिति

  • सिद्ध ब्लॉग: साप्ताहिक लेख और विचार।

  • यूट्यूब चैनल: 175+ वीडियो प्रकाशित, जिनमें चर्चाएँ और विचार-विमर्श शामिल हैं।

  • टेलीग्राम चैनल: नियमित संवाद का माध्यम।

3. प्रकाशन

सिद्ध समय-समय पर भारतीय सभ्यता और इतिहास पर आधारित पुस्तकें प्रकाशित करता है। इसके साथ ही, ऐसी दुर्लभ पुस्तकों का पुनः प्रकाशन भी करता है जो भारतीय इतिहास और वर्तमान का विश्लेषण करती हैं।

4. शोध

सिद्ध भारतीय समाज की परंपरागत ज्ञान प्रणालियों पर शोध योजनाएँ बना रहा है, जिनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, भोजन, और संगीत शामिल हैं।

5. स्कूल

टिहरी गढ़वाल के गढ़खेत गाँव में सिद्ध द्वारा स्थापित प्राथमिक स्कूल वर्तमान में एक अभिभावक समिति द्वारा संचालित है। यहाँ 6 गाँवों के लगभग 125 बच्चे (उम्र 3-12 वर्ष) पढ़ाई कर रहे हैं, और 6 शिक्षक कार्यरत हैं।

सिद्ध विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से भारतीय दृष्टि और मूल्यों को पुनर्जीवित करने की दिशा में काम कर रहा है। यदि आप इस प्रयास में सहभागी बनना चाहते हैं, तो हमसे जुड़ें।

 

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